वक़्त करता कुछ दगा या, तुम दगा करते कभी
साथ चलते और तो, हम भी बिछड़ जाते कभी
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
Sunday, December 28, 2008
Dost
बचपन हमारे बराबर कद के थे दोस्त
आज तुम इतने ऊंचे हो गए हो
कि मेरे हाथ नहीं पहुँचते तुम तक
हम दोनों ने विस्तार किया
मैंने समंदर की तरह
तुमने आसमान की तरह...
मैंने अपनी मौजों को बहुत उछाला पर
खाली हाथ वापस आ गयीं
तुम्हे छू भी नहीं पायी
तुम्ही झुक कर मुझे गले लगा लो दोस्त
जैसे उफक पर आकर
आसमान समंदर के गले लगता है...
आज तुम इतने ऊंचे हो गए हो
कि मेरे हाथ नहीं पहुँचते तुम तक
हम दोनों ने विस्तार किया
मैंने समंदर की तरह
तुमने आसमान की तरह...
मैंने अपनी मौजों को बहुत उछाला पर
खाली हाथ वापस आ गयीं
तुम्हे छू भी नहीं पायी
तुम्ही झुक कर मुझे गले लगा लो दोस्त
जैसे उफक पर आकर
आसमान समंदर के गले लगता है...
Talash
जिसकी तलाश मुझे भटकाती रही,
चाह में खुद को जलाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
बेसबब उन पथरीली राहों पर चलकर
खुद को ज़ख़्मी बनाती रही,
कभी गिरती कभी सम्हल जाती
सम्हल कर चलती तो कभी लड़खड़ाती
लड़खड़ाते कदमो को देख लोग मुस्कराते
कोई कहता शराबी तो कई पागल बुलाते
पर कोई न होता जो मुझे सम्हाल पाता
गिरे देखकर अपना हाथ बढ़ाता
जिसकी तलाश में खुद को गिराती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
चाह में खुद को जलाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
बेसबब उन पथरीली राहों पर चलकर
खुद को ज़ख़्मी बनाती रही,
कभी गिरती कभी सम्हल जाती
सम्हल कर चलती तो कभी लड़खड़ाती
लड़खड़ाते कदमो को देख लोग मुस्कराते
कोई कहता शराबी तो कई पागल बुलाते
पर कोई न होता जो मुझे सम्हाल पाता
गिरे देखकर अपना हाथ बढ़ाता
जिसकी तलाश में खुद को गिराती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
अधूरे एहसास के साथ मैं चलती रही,
मिलन की आस लिए कल – कल बहती रही
कभी किसी झील, तो कभी नहर से मिली ,
कभी झरने में मिलकर, संग संग गिरी
मिला न वो,जो मुझमे मिलकर मुझे संवारे
मेरे रूप का श्रगार कर इसे और निखारे
जिसके लिए अपने वजूद को मिटाती रही
वो सुख तो कभी था ही नहीं
Maa
शुक्रिया माँ
मुझे मुह अँधेरे जगाकर पढाने के लिए
हर परीक्षा में मेरा हौसला बढाने के लिए
मुझे बैंक में ड्राफ्ट बनवाना,
पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना
सिखाने के लिए
अकेले बसों में सफर करना
दुनिया से अकेले लड़ना सिखाने के लिए
असहायों की मदद करना, दुष्टों से निपटना
और मित्रता निभाना सिखाने के लिए
तुरपाई करना, बटन लगाना, खाना बनाना
और कपडे प्रेस करना सिखाने के लिए
अपनी अच्छाइयां मुझमे डालने के लिए
मुझे इस दुनिया में लाने के लिए
ये खूबसूरत जहाँ दिखाने के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया माँ....
मुझे मुह अँधेरे जगाकर पढाने के लिए
हर परीक्षा में मेरा हौसला बढाने के लिए
मुझे बैंक में ड्राफ्ट बनवाना,
पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना
सिखाने के लिए
अकेले बसों में सफर करना
दुनिया से अकेले लड़ना सिखाने के लिए
असहायों की मदद करना, दुष्टों से निपटना
और मित्रता निभाना सिखाने के लिए
तुरपाई करना, बटन लगाना, खाना बनाना
और कपडे प्रेस करना सिखाने के लिए
अपनी अच्छाइयां मुझमे डालने के लिए
मुझे इस दुनिया में लाने के लिए
ये खूबसूरत जहाँ दिखाने के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया माँ....
choti behna
ए छुटकी...
पता है..जब तू आई थी अपने घर पर
बावला हो गया था तुझे छूने को
पर मैं भी बच्चा ही तो था
माँ ने धीरे से मेरा हाथ तुझसे छुल्वाया था
लेकिन मौका पाकर तुझे भर लेता था
मैं अपनी नन्ही गोद में
टुकुर टुकुर मुझे देखती तू
धीरे से हस पड़ती थी....
और तेरे स्कूल का पहला दिन
रोई ,सहमी सी तू
मेरे एक हाथ में तेरा बस्ता
और दूसरे हाथ में तेरी ऊँगली
एक बात बताऊ तुझे....
भले ही मैं तुझसे लड़ता था
लेकिन
तेरा बस्ता उठाना मुझे
बहुत अच्छा लगता था...
राखी बंध्वाता था जब भी
तुझे बहुत सताता था
तब कहीं जाकर पैसे देता था...
लेकिन
मन करता था काश
दुनिया की सारी दौलत
तुझे उपहार में दे पाता...
कैसे भूल जाऊ पगली कि
मेरी कितनी गलतियों को
छुपाया है तूने
जाने कितनी बार डांट पड़ने से
बचाया है तूने
अपनी सहेली से अगर न मिलवाती
तो कैसे होती वो आज तेरी भाभी...
एक बात और कहूं....
मुझे छेड़ना मत
मैंने कहा था तुझसे कि
नहीं रोऊंगा तेरी विदाई में
सब झूठ था छुटकी..
देख आंसू ख़तम ही नहीं होते मेरे
तीन दिन से हर रात बस रो ही रहा हूँ
न माने तो पूछ ले अपनी भाभी से...
भले ही कितना भी झगडा हूं तुझसे
पर याद रखना छुटकी की बच्ची
कि बहुत प्यार करता है तुझे
तेरा ये बड़ा भाई....
और चाहता है हरदम
बस तेरी खुशियाँ और भलाई...
पता है..जब तू आई थी अपने घर पर
बावला हो गया था तुझे छूने को
पर मैं भी बच्चा ही तो था
माँ ने धीरे से मेरा हाथ तुझसे छुल्वाया था
लेकिन मौका पाकर तुझे भर लेता था
मैं अपनी नन्ही गोद में
टुकुर टुकुर मुझे देखती तू
धीरे से हस पड़ती थी....
और तेरे स्कूल का पहला दिन
रोई ,सहमी सी तू
मेरे एक हाथ में तेरा बस्ता
और दूसरे हाथ में तेरी ऊँगली
एक बात बताऊ तुझे....
भले ही मैं तुझसे लड़ता था
लेकिन
तेरा बस्ता उठाना मुझे
बहुत अच्छा लगता था...
राखी बंध्वाता था जब भी
तुझे बहुत सताता था
तब कहीं जाकर पैसे देता था...
लेकिन
मन करता था काश
दुनिया की सारी दौलत
तुझे उपहार में दे पाता...
कैसे भूल जाऊ पगली कि
मेरी कितनी गलतियों को
छुपाया है तूने
जाने कितनी बार डांट पड़ने से
बचाया है तूने
अपनी सहेली से अगर न मिलवाती
तो कैसे होती वो आज तेरी भाभी...
एक बात और कहूं....
मुझे छेड़ना मत
मैंने कहा था तुझसे कि
नहीं रोऊंगा तेरी विदाई में
सब झूठ था छुटकी..
देख आंसू ख़तम ही नहीं होते मेरे
तीन दिन से हर रात बस रो ही रहा हूँ
न माने तो पूछ ले अपनी भाभी से...
भले ही कितना भी झगडा हूं तुझसे
पर याद रखना छुटकी की बच्ची
कि बहुत प्यार करता है तुझे
तेरा ये बड़ा भाई....
और चाहता है हरदम
बस तेरी खुशियाँ और भलाई...
Subscribe to:
Posts (Atom)